Wednesday 11 May 2011


आंसू 




जाने कैसे बिना बुलाये 
आँखों में आ जाते आंसू 
विद्रोह भरे तलपट से बहकर 
विष से मुक्ति दिलाते आंसू  

कहते है वह इस समाज से 
है मेरा अस्तित्व कहाँ 
हूँ समुद्र या गंगा का जल 
क्या मालूम कृतित्व कहाँ 

आह घुटन अवगुण्ठन का जल 
जब जब तू देता है मुझको
तब तब ज्वार भरे ह्रदय में 
मै मधु कविता देता तुझको  

मधु त्रिपाठी MM

Monday 9 May 2011

भटकाव..........

इस विषय पर मत लिखना 
जिसमे की आंसू शब्द घन 
यह बड़ा विस्तृत विषय है 
रह गए स्तब्द बन 


शोध किया प्रतिशोध पे मैंने 
मिली चिता की समिधा पूर्ण  
उपर है चिन्गारकी अंगिया  
पूर्ण बदन अंगार की साड़ी


जीवन के संग्राम से जीती 
मन के  द्वंद्व से हार गयी
नाव किनारे एक खड़ी कर 
मै नदिया के पार गयी

कई बार डूबी उतराई 
कई बार जलचर से बची         
सोंचो की लहरों में फंसकर   
 नयी भवर की नीव धरी 


---मधु त्रिपाठी MM

Friday 6 May 2011

manu


आँधी.......

आज कैसी चाँदनी है
आज कैसी रागिनी
आज कैसी चपल चपला
आज कैसी वादिनी 


आज कोई रहा है
संग लेके संगिनी
घर्र घर घर्रा रही है
नाद करती गर्जनी


रूप है विकराल जिसका
रात जैसी छावनी
साँस भी बेढंग लेती
जो कभी थी पावनी


पवन में भारती अँधेरा
राह करती निर्जनी
आँख में अंधड़ पिरोती
पकड़ किसकी तर्जनी


शेष है समृद्धि का ये
रंग इसका जामुनी
भाग हो इस पृकृति का तुम
कह रही है सर्जनी


आह्लाद अंगीकार हा हा
बह रही उन्मादिनी
केश झंझावत उड़ाती
रही शिव घातिनी
            ----मधु त्रिपाठी