Wednesday 29 June 2011

सच्ची बात

वक्त..............
                 आज आँख चौड़ी होकर सामने चौड़े रास्ते को देख रही थी इतने दिन से यह रास्ता दिखा क्यों नहीं, हम अब तक पतली गलियां तलासते रहे कभी घर के पास कभी घर से दूर हर समय दिन के अंत में समय बचाने की योजना इतनी व्यस्त जिन्दगी कि यारों के लिए वक्त कहाँ था किसी
 एक के पास होने से सारा संसार दूर किन्तु खुशनुमा 



                क्या एक व्यक्ति ही काफी होता है जहाँ बसाने के लिए क्या गया मेरे पास वह एक अकेला क्या ले गया मेरा सबकुछ तो जहाँ का तहां पड़ा है  बस गया तो दिल एक छोटा सा शरीर का टुकड़ा और चारों तरफ सन्नाटा छा गया 

                बहुत खास बन जाता है वह व्यक्ति जो कहीं और से थोड़े समय के लिए आकर वो सब कुछ दे जाता है जो अपने जीवन भर साथ रहने के बावजूद नहीं दे पाते

 मधु त्रिपाठी MM

Thursday 23 June 2011

इक टुकड़ा

एक टुकड़ा 



इक टुकड़ा बादल का आ गया 
जो तह तक मुझको भिगो गया
      यह मेघ भले दो पल का था 
      जा दर परतों में समा गया 

अविलम्ब रूका रुखी छत पर 
शनि के वलयों सा घेर लिया 
     बूंदों से अधरों की गति दे 
     सोई तृष्णा को जगा गया 

फिर उड़ा मलंग उड़ता ही गया 
उड़ता ही गया अविराम लिए 
    नन्ही पर मोटी बूंदों से 
   मेरे जीवन को अघा गया 

हो वाष्प विलय पयोधि उड़े 
तत पुनः मिलन की आश लिए 
   क्यों ह्रदय दाह लेकर जाते  
   क्या यह बिछोह नहीं सहा गया 

अनुसरण किया पर मिला नहीं 
मनमौजी किसलय पार गया 
  सतरंगी धनुष दिखाकरके 
  आसमान ही ढहा गया   

मधु त्रिपाठी MM

Saturday 18 June 2011

संध्या

  संध्या  



    बिना  आवाज  के ही चंद समुद्र के अंक से निकलकर आसमान से मानस मन को  अपनी ओर आकर्षित करने को पदार्पण कर रहा था दूसरी तरफ सूर्य अपनी थकान मिटाने समुद्र कि गोद मी आंख  मूंदकर सोना  चाहता था 




मै अपनी छत के ठीक बिचोबीच सिऱ्हाने तकिया रखे बडे गौर से देख रही थी कि   संध्या  ने अपनी लालिमा की कुछ  छटा मेरे अंग पर उडेल दी कितनी सुशील सादगी से निर्मित लगती यह सांझ बिल्कुल सोलह वर्षीय कुमारी कोई वन बालिका सी इसे अपलक देखते रहने कि उत्कंठा सदैव बनी ही रही थी कि जैसे उसे नजर ही लग गयी हो कुछ स्याह काले बादलों ने आकर  उसे घेर लिया अकेली बाला करती क्या सिवा समर्पण के


  कामुक यामिनी {रात}ने इस तऱ्ह बाहो के घेरे मी लिया कि  संध्या  का अंग अंग तारो के रूप  बदल गया सुकुमारी के मुख पर भय देख चतुर यामिनी ने उजाले के चांद को रात चमकणे का ठेका दे दिया 
  और  आगे ..............कल 


मधु 

Monday 13 June 2011

स्व


 निज  गौरव   
अब अकेले ही सफ़र का खात्मा हम भी करेंगे 
अब न लेंगे  भीख उनकी साधना ये भी करेंगे 

विगत वर्षों से करती आ रही जिनकी प्रतीक्षा 
पर मिली क्या प्रेम की करुणा मिली कोई भी भिक्षा 

आज हम निज साधनों से गौरव बनाकर जूझ लेंगे 
 अब न लेंगे  भीख उनकी साधना ये भी करेंगे   

मधु त्रिपाठी MM

अविरल धारा

अविरल धारा

बहने दो अविरल धारा को  
यह महाप्रलय को लाएगी 
कर लेगी सबको आत्मसात 
फिर दुनिया मिटती जाएगी 
रह जायेंगे वो लोग कि 
जिनका ह्रदय महासागर होगा 
बन बूँद अश्रु समर्पण की 
तत समां उसी में जाएगी 
जंगल में कर समावेश 
निज प्रभुता को पा जाएगी 
पेड़ो के पत्तों पर बैठी 
ओस बूँद कहलाएगी 
यदि ब्रह्माण्ड के पार गयी 
रणक्षेत्र वही बन जाएगी 
घिर असमान के पन्नो पर 
बादल को खा जाएगी  


मधु त्रिपाठी MM  
  

Saturday 4 June 2011


विदाई 


बोया  माली ने पौधा
फूल खिलने के लालच में 
फिर सींचा क्रमश कोपल को 
धीरे धीरे सहलाया 
मुस्कान भरी मधुर अंखियो से 
किया निरंतर रखवारी 
फूल ले उड़ा कोई दूजा 
सूनी कर दी सारी क्यारी 
अपलक देख रहा इस ओर    
केवल  मूक मूर्ति बनकर 
जिस पथ पर सुगंध फूल की 
बुला न पाई मुड-मुडकर 

मधु त्रिपाठी MM

एक अभियान

एक अभियान 


आर्थिक  आजादी   का 
     अभियान चलाये 
          चलो स्वर्ग बनाये  

देखो इन मजदूरों को 
ईंटो पैर ईंट सजोते है                 
सोते स्वयं  झोपडी में
महल हमे दे जाते है  

सुखद नीद के 
    हकदारों का 
        स्वप्न सजाये 

          चलो स्वर्ग बनाये  

मधु त्रिपाठी MM