Tuesday 22 November 2011

अभिलाषा 
     लोगों से अक्सर मैंने फौजियो के साहस की गाथाएं ही सुनी किन्तु कभी किसी ने सोचा की उनके जाने के बाद उनकी पत्नियों पर क्या गुजरती होगी  जब अवकाश के समय उनके पति साथ समय बिताते है क्या उस समय उन्हें   एक अनजाना भय शूल न सालता होगा दुबारा मिल पाने न पाने की असमंजस की स्थिति पल पल न मरती होगी ऐसा ही एक करुण दृश्य प्रस्तुत करने की कोशिश कर रही हूँ............................. 
आह ;आज फिर जाने की घडी आ गयी प्रिये सुनो मत जाओ 
क्या?सारा देश तुम्हारी ही राह देख रहा है पता है क्या जवाब दोगे यही न की जननी से बढ़कर कोई नहीं ............ ..............
पर मै क्या करूं एक बार जाने के बाद फिर से मिलने की चाह और बढ़  जाती है...............


        तुम दूर न जाओ मुझसे ठहरो मुझको जी लेने दो

मत उठो बटोही हाथ छुड़ा, ये ह्रदय बहुत अकुलाता है 
कुछ प्यासे है चिर नयन पुंज, उनको छककर पी लेने दो

         तुम दूर न जाओ मुझसे ठहरो मुझको जी लेने दो


हे पथिक सुनो अनुपस्थिति में, स्मृतियों ने था भेद दिया 
बह रहे बिना अवरोध कोई, उन घाओ को सी लेने दो 


        तुम दूर न जाओ मुझसे ठहरो मुझको जी लेने दो

जग रात-रात पद चिन्हों का, इन नैनों ने मग जोहा है
इन थके जगे नैनों को अब, संग पल दो पल सो लेने दो 


       तुम दूर न जाओ मुझसे ठहरो मुझको जी लेने दो


अब रिक्त हुआ सागर मधु का, अब कहाँ प्रस्फुटन लहरों का 
पथराई हुयी एक प्रतिमा, लग सीने से सो लेने दो


      तुम दूर न जाओ मुझसे ठहरो मुझको जी लेने दो


 मधु त्रिपाठी MM