Friday 12 August 2011

हम

हम

 

हम पानी है तो पानी के निशान छोड़ जायेंगे 
हम पानी है तो पानी के निशान छोड़ जायेंगे 

सीमा पे चढ़ेंगे तो प्रहरी बनेगे 
भारत के भाल की रक्षा करेंगे 
नेता जी सुभाष वाली गोली बन चलेंगे 
जय हिंद के नारों से धरती हिलेगी 
सौ करोड़ जनता की दहाड़ बन जायेंगे

मैया की छाती का छीर बन जायेंगे
भइया की राखी की लाज बन जायेंगे
बहना सुहाग वाली डोली बन जायेंगे
आयी हुई दुल्हन हँस के कहेगी 
पिया की सेजरिया श्रंगार बन

गर्मियों में धूप का पसीना बन जायेंगे
खेत  में किसान का नगीना बन जायेंगे
भोर की पति पे ओस बन जायेंगे 
सीप के अन्दर वाली मोती कहेगी 
गिरेंगे कपोल पे आंसू बन जायेंगे  

मधु त्रिपाठी 
MM                                                   





Wednesday 10 August 2011

वंदना

वंदना  



मै प्रथम गणेश मनाती हू 
आवाहन कराती हूँ तेरा 
पूजा की थाल सजाती हूँ

आ देख दशा लो विश्व यहा
जलता है दीप की बाती से 
मताए खून बहाती है
अपनी ही दूध की छाती से

जिन कोमल कोमल हाथो से
फूलो की माला चढ़नी थी 
जपना था जिनको राम नाम 
गीता की पुस्तक पढनी थी

जिन्हें विद्या आलय जाना था
मदिरालय जाकर बैठे है 
जिन्हें देश धर्म पर मिटना था 
जेहाद छेडकर बैठे है

ऐसी व्यथित घटित घटना 
मैतुमको अर्पण करती हूँ
मै प्रथम गणेश मनाती हू 

मधु त्रिपाठी 
MM



एकाकिनी दो


एकाकिनी के पन्नो से 


जो १५ वर्षो पूर्व रची गयी 


ऐ चंदा,
आज अकेली बैठ भवन मे 
अपन मन समझाऊ 
जो  कविता मेरी समझ सके 
वो कवी कहा से लाऊ 

ऐ चंदा,
दूर गगन में देख तुझे
ए हूक उठाये पीरे 
कैसे पहुचू तुम तक प्रिय 
बांध रखी जंजीरे

ऐ चंदा,
साथ हमारा तूफा दे 
पंख बिना उड़  जाऊ
आहत होते भाव हमारे
कैसे तुम्हे बताऊ 

मधु त्रिपाठी 
MM  


Saturday 6 August 2011

एकाकिनी एक

एकाकिनी के पन्नो से 

जो १५ वर्षो पूर्व रची गयी 
मौन है यह अधर नीरव 
  बोलना कुछ चाहते है 
जो ह्रदय में भेद चुप है 
  खोलना वो चाहते है 

चाहते है ऐसी शब्द ऐसा 
  दग्ध कर दे जो ह्रदय को 
सुन जिसे मन चिहुक जाय
  गीत ऐसा चाहते है 

चाहते है ऐसी बाहें, 
  पा जिसे तन मुक्त हो न
तृप्त तृष्णा को जो कर दे 
  मधुपान ऐसा चाहते है 

चाहते हैऐसा बंधन 
बांध दे जो काठ का मन 
जो मिला दे मीत मेरा   
बाट ऐसी चाहते है

मधु त्रिपाठी 
MM