Friday, 6 May 2011

आँधी.......

आज कैसी चाँदनी है
आज कैसी रागिनी
आज कैसी चपल चपला
आज कैसी वादिनी 


आज कोई रहा है
संग लेके संगिनी
घर्र घर घर्रा रही है
नाद करती गर्जनी


रूप है विकराल जिसका
रात जैसी छावनी
साँस भी बेढंग लेती
जो कभी थी पावनी


पवन में भारती अँधेरा
राह करती निर्जनी
आँख में अंधड़ पिरोती
पकड़ किसकी तर्जनी


शेष है समृद्धि का ये
रंग इसका जामुनी
भाग हो इस पृकृति का तुम
कह रही है सर्जनी


आह्लाद अंगीकार हा हा
बह रही उन्मादिनी
केश झंझावत उड़ाती
रही शिव घातिनी
            ----मधु त्रिपाठी

3 comments:

  1. this is fabulous krati...i like it most.

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  2. मेल संभालने के लिए मैसेज भेजा था …
    :))

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  3. अत्यंत सुकोमल कविता आप सृजित कर रही हैं, आपकी कलम को और ज़ोर मिले इस शुभकामना के साथ

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