Wednesday, 11 May 2011


आंसू 




जाने कैसे बिना बुलाये 
आँखों में आ जाते आंसू 
विद्रोह भरे तलपट से बहकर 
विष से मुक्ति दिलाते आंसू  

कहते है वह इस समाज से 
है मेरा अस्तित्व कहाँ 
हूँ समुद्र या गंगा का जल 
क्या मालूम कृतित्व कहाँ 

आह घुटन अवगुण्ठन का जल 
जब जब तू देता है मुझको
तब तब ज्वार भरे ह्रदय में 
मै मधु कविता देता तुझको  

मधु त्रिपाठी MM

1 comment:

  1. पहला और अंतिम छंद बेजोड़ बन पड़ा है बधाई

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