Saturday, 30 July 2011

दिशा

अब अकेले ही चलेंगे पंथ धुंधला ही सही 

सांसे उधारी मांग उनसे 
कर लिए मेले बहुत 
उड़ गए बिन पंख ऐसे 
तितलियों के देश में 

और लेकर चल दिए 
रंगों की साड़ी खूबियाँ 
तारों से लिपटी चादरें 
चंदा जड़ी ली सारियां 

फिर गगन में ली कुलाचे 
संग हो ली बिजलियाँ 
आँधियों ने पथ बुहारा 
खोल सारी खिड़कियाँ 

और ऊपर और ऊपर  
और ऊपर भी गए 
बस वही ठोकर लगी 
निश्वास होकर गिर पड़े 

चीख उठी आह भरकर
साँस अब रुकने लगी 
हो गए निस्तेज पल पल 
आँख भी मुंदने लगी 

एक झटके में हुआ 
अपने शहर से वास्ता 
हाय कैसे भूल बैठी 
निज गली का रास्ता 

जल्द सोचा अब यही 
जीवन हमारा है 'मधु'
साँस अपनी ही भरेंगे 
एक थैला ही सही 

अब अकेले ही चलेंगे पंथ धुंधला ही सही 

मधु त्रिपाठी MM

3 comments:

  1. mere blog par padharne par abhar ..
    aap achchha likhtin hain ...
    safar jari rakhen.
    shubhkamnayen....

    ReplyDelete
  2. मधु जी ये पंक्तियाँ अच्छी लगी और मार्मिक भी !
    एक झटके में हुआ
    अपने शहर से वास्ता
    हाय कैसे भूल बैठी
    निज गली का रास्ता

    ReplyDelete
  3. .


    मधु जी


    आप बहुत मन से लिखती हैं , इसलिए आपका लिखा मन पर असर करता है …
    :)

    कोटिशः मंगलकामनाएं !

    ReplyDelete