Saturday, 6 August 2011

एकाकिनी एक

एकाकिनी के पन्नो से 

जो १५ वर्षो पूर्व रची गयी 
मौन है यह अधर नीरव 
  बोलना कुछ चाहते है 
जो ह्रदय में भेद चुप है 
  खोलना वो चाहते है 

चाहते है ऐसी शब्द ऐसा 
  दग्ध कर दे जो ह्रदय को 
सुन जिसे मन चिहुक जाय
  गीत ऐसा चाहते है 

चाहते है ऐसी बाहें, 
  पा जिसे तन मुक्त हो न
तृप्त तृष्णा को जो कर दे 
  मधुपान ऐसा चाहते है 

चाहते हैऐसा बंधन 
बांध दे जो काठ का मन 
जो मिला दे मीत मेरा   
बाट ऐसी चाहते है

मधु त्रिपाठी 
MM

1 comment:




  1. मधु जी
    आपके ब्लॉग पर विचरण जारी है

    एकाकिनी शृंखला की तीनों रचनाएं बहुत भावपूर्ण हैं
    एक से बढ़कर एक !
    बहुत सुंदर !
    बधाई और शुभकामनाएं !


    मंगलकामनाओं सहित
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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