एकाकिनी के पन्नो से
मौन है यह अधर नीरव
बोलना कुछ चाहते है
जो ह्रदय में भेद चुप है
खोलना वो चाहते है
चाहते है ऐसी शब्द ऐसा
दग्ध कर दे जो ह्रदय को
सुन जिसे मन चिहुक जाय
गीत ऐसा चाहते है
चाहते है ऐसी बाहें,
पा जिसे तन मुक्त हो न
तृप्त तृष्णा को जो कर दे
मधुपान ऐसा चाहते है
चाहते हैऐसा बंधन
बांध दे जो काठ का मन
जो मिला दे मीत मेरा
बाट ऐसी चाहते है
मधु त्रिपाठी
MM
♥
ReplyDeleteमधु जी
आपके ब्लॉग पर विचरण जारी है
एकाकिनी शृंखला की तीनों रचनाएं बहुत भावपूर्ण हैं
एक से बढ़कर एक !
बहुत सुंदर !
बधाई और शुभकामनाएं !
मंगलकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार