यादें हमारी
मै राधा तुम श्याम रे
ए श्याम कितनी दुःख की घड़ी है आज तुम्हारी यादों ने मुझे घेर लिया और तन्हाईयाँ बिस्तर बन गयी जिसपर सारी रात लेटकर बिताना मजबूरी है क्या करू श्याम आज का चाँद तुम्हारा चेहरा लेकर मुझे चिढाने आया है या स्वयं तुम्ही हो
ए श्याम
तुम्हें देखते ही मन बेबस
क्यों हो जाता है
डर जाता है
शायद तुम्हारे
बिछुड़ने से
जानता है एक बार
मिलने के बाद
बहुत दूर है मिलन दूसरा
आँखे भर-भर प्यार छलकाती है
लबों तक उभर आई मदिरा
पिला देने को तत्पर
ये हाथ स्वयं बढ थाम लेते है तुम्हें
खीच ले जाते है सीने तक
छुपा लेने को तुम्हारी सांसे
कुछ क्षण प्रकृति स्थिर हो
देखती रह जाती है
दो विकल,
बिछुड़ी आत्माओ को
समय भी रूककर
प्रतीक्षा करता है
हमारी विरत बाँहों को
देखने के लिए
अनगढ़ा मिलन भय के अतिरिक्त
कुछ नहीं दे पाता
फिर सांसे परिवर्तित हो जाती है
स्थिरता की ओर
पृथ्वी की लौ उठकर दूर गगन में
विचरण करने के लगती है
कुछ देर के लिए
सारी प्रकृति रोमांचित हो
पुनः संलग्न हो स्वकार्य करती है
समय भी चल देता है
अपनी गति लिए
पुनः पुनः पा लेता है
हर क्षण अपना स्वरुप
बस रह जाते है निस्पंदित
दो हाथ,
निर्जीव सांसे
मूक मुद्रा
और
स्थिर गात
मधु त्रिपाठी MM
aम्नोहर चित्र , मनोहर शब्द ! बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति मधु जी !ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं-
ReplyDeleteदो विकल,
बिछुड़ी आत्माओ को
समय भी रूककर
प्रतीक्षा करता है
हमारी विरत बाँहों को
देखने के लिए
पढ़ कर बरबस ही परवीन शाकिर की याद हो आई .... कविता मार्मिक बन पड़ी है
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