Wednesday, 29 June 2011

सच्ची बात

वक्त..............
                 आज आँख चौड़ी होकर सामने चौड़े रास्ते को देख रही थी इतने दिन से यह रास्ता दिखा क्यों नहीं, हम अब तक पतली गलियां तलासते रहे कभी घर के पास कभी घर से दूर हर समय दिन के अंत में समय बचाने की योजना इतनी व्यस्त जिन्दगी कि यारों के लिए वक्त कहाँ था किसी
 एक के पास होने से सारा संसार दूर किन्तु खुशनुमा 



                क्या एक व्यक्ति ही काफी होता है जहाँ बसाने के लिए क्या गया मेरे पास वह एक अकेला क्या ले गया मेरा सबकुछ तो जहाँ का तहां पड़ा है  बस गया तो दिल एक छोटा सा शरीर का टुकड़ा और चारों तरफ सन्नाटा छा गया 

                बहुत खास बन जाता है वह व्यक्ति जो कहीं और से थोड़े समय के लिए आकर वो सब कुछ दे जाता है जो अपने जीवन भर साथ रहने के बावजूद नहीं दे पाते

 मधु त्रिपाठी MM

3 comments:

  1. अक्सर ऐसा होता है लेकिन
    कई बार यूँ भी होता है कि ...
    - बन्द है मुट्ठी तो लाख की, खुल गयी तो खाक की
    - घर का जोगी जोगडा आन गाँव का सिद्ध

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  2. बहुत खास बन जाता है वह व्यक्ति जो कहीं और से थोड़े समय के लिए आकर वो सब कुछ दे जाता है जो अपने जीवन भर साथ रहने के बावजूद नहीं दे पाते .
    एकदम सही कहा आपने मधु जी । यही जीवन का सत्य है , विडम्बना भी है !

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  3. मुहब्बतों की दूरियों में अज़ब फासले हैं
    कहीं एक पल को गले मिल उम्र भर का ग़म
    कहीं उम्र भर साथ रह कर भी फासले हैं

    अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकारें

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