एकाकिनी के पन्नो से
ऐ चंदा,
आज अकेली बैठ भवन मे
अपन मन समझाऊ
जो कविता मेरी समझ सके
वो कवी कहा से लाऊ
ऐ चंदा,
दूर गगन में देख तुझे
ए हूक उठाये पीरे
कैसे पहुचू तुम तक प्रिय
बांध रखी जंजीरे
ऐ चंदा,
साथ हमारा तूफा दे
पंख बिना उड़ जाऊ
आहत होते भाव हमारे
कैसे तुम्हे बताऊ
मधु त्रिपाठी
MM
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