Wednesday, 10 August 2011

एकाकिनी दो


एकाकिनी के पन्नो से 


जो १५ वर्षो पूर्व रची गयी 


ऐ चंदा,
आज अकेली बैठ भवन मे 
अपन मन समझाऊ 
जो  कविता मेरी समझ सके 
वो कवी कहा से लाऊ 

ऐ चंदा,
दूर गगन में देख तुझे
ए हूक उठाये पीरे 
कैसे पहुचू तुम तक प्रिय 
बांध रखी जंजीरे

ऐ चंदा,
साथ हमारा तूफा दे 
पंख बिना उड़  जाऊ
आहत होते भाव हमारे
कैसे तुम्हे बताऊ 

मधु त्रिपाठी 
MM  


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