अभिलाषा
लोगों से अक्सर मैंने फौजियो के साहस की गाथाएं ही सुनी किन्तु कभी किसी ने सोचा की उनके जाने के बाद उनकी पत्नियों पर क्या गुजरती होगी जब अवकाश के समय उनके पति साथ समय बिताते है क्या उस समय उन्हें एक अनजाना भय शूल न सालता होगा दुबारा मिल पाने न पाने की असमंजस की स्थिति पल पल न मरती होगी ऐसा ही एक करुण दृश्य प्रस्तुत करने की कोशिश कर रही हूँ.............................
आह ;आज फिर जाने की घडी आ गयी प्रिये सुनो मत जाओ
क्या?सारा देश तुम्हारी ही राह देख रहा है पता है क्या जवाब दोगे यही न की जननी से बढ़कर कोई नहीं ............ ..............
पर मै क्या करूं एक बार जाने के बाद फिर से मिलने की चाह और बढ़ जाती है...............
तुम दूर न जाओ मुझसे ठहरो मुझको जी लेने दो
मत उठो बटोही हाथ छुड़ा, ये ह्रदय बहुत अकुलाता है
कुछ प्यासे है चिर नयन पुंज, उनको छककर पी लेने दो
तुम दूर न जाओ मुझसे ठहरो मुझको जी लेने दो
हे पथिक सुनो अनुपस्थिति में, स्मृतियों ने था भेद दिया
बह रहे बिना अवरोध कोई, उन घाओ को सी लेने दो
तुम दूर न जाओ मुझसे ठहरो मुझको जी लेने दो
जग रात-रात पद चिन्हों का, इन नैनों ने मग जोहा है
इन थके जगे नैनों को अब, संग पल दो पल सो लेने दो
तुम दूर न जाओ मुझसे ठहरो मुझको जी लेने दो
अब रिक्त हुआ सागर मधु का, अब कहाँ प्रस्फुटन लहरों का
पथराई हुयी एक प्रतिमा, लग सीने से सो लेने दो
तुम दूर न जाओ मुझसे ठहरो मुझको जी लेने दो
मधु त्रिपाठी MM
लोगों से अक्सर मैंने फौजियो के साहस की गाथाएं ही सुनी किन्तु कभी किसी ने सोचा की उनके जाने के बाद उनकी पत्नियों पर क्या गुजरती होगी जब अवकाश के समय उनके पति साथ समय बिताते है क्या उस समय उन्हें एक अनजाना भय शूल न सालता होगा दुबारा मिल पाने न पाने की असमंजस की स्थिति पल पल न मरती होगी ऐसा ही एक करुण दृश्य प्रस्तुत करने की कोशिश कर रही हूँ.............................
आह ;आज फिर जाने की घडी आ गयी प्रिये सुनो मत जाओ
क्या?सारा देश तुम्हारी ही राह देख रहा है पता है क्या जवाब दोगे यही न की जननी से बढ़कर कोई नहीं ............ ..............
पर मै क्या करूं एक बार जाने के बाद फिर से मिलने की चाह और बढ़ जाती है...............
तुम दूर न जाओ मुझसे ठहरो मुझको जी लेने दो
मत उठो बटोही हाथ छुड़ा, ये ह्रदय बहुत अकुलाता है
कुछ प्यासे है चिर नयन पुंज, उनको छककर पी लेने दो
तुम दूर न जाओ मुझसे ठहरो मुझको जी लेने दो
हे पथिक सुनो अनुपस्थिति में, स्मृतियों ने था भेद दिया
बह रहे बिना अवरोध कोई, उन घाओ को सी लेने दो
तुम दूर न जाओ मुझसे ठहरो मुझको जी लेने दो
जग रात-रात पद चिन्हों का, इन नैनों ने मग जोहा है
इन थके जगे नैनों को अब, संग पल दो पल सो लेने दो
तुम दूर न जाओ मुझसे ठहरो मुझको जी लेने दो
अब रिक्त हुआ सागर मधु का, अब कहाँ प्रस्फुटन लहरों का
पथराई हुयी एक प्रतिमा, लग सीने से सो लेने दो
तुम दूर न जाओ मुझसे ठहरो मुझको जी लेने दो
मधु त्रिपाठी MM
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मत उठो बटोही हाथ छुड़ा, ये ह्रदय बहुत अकुलाता है
कुछ प्यासे है चिर नयन पुंज, उनको छककर पी लेने दो
तुम दूर न जाओ मुझसे ठहरो मुझको जी लेने दो
जग रात-रात पद चिन्हों का, इन नैनों ने मग जोहा है
इन थके जगे नैनों को अब, संग पल दो पल सो लेने दो
तुम दूर न जाओ मुझसे ठहरो मुझको जी लेने दो
आहऽऽ… ! इतना मर्मस्पर्शी इतना सुंदर गीत रचने वाली मधु कहां है आजकल ?
सुन रही हैं आप प्रिय मधु त्रिपाठी जी …
सस्नेहाभिवादन !
इतने महीने हो गए … कोई ख़बर नहीं …
न पोस्ट बदली , न मेरी किसी रचना पर ही कोई प्रतिक्रिया …
आशा है, आप सपरिवार स्वस्थ-सानंद-सकुशल हैं
आइएगा … इंतज़ार है ………
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
# आज आपका गीत आज कैसी रागिनी भी सुन रहा हूं …