Monday, 13 June 2011

अविरल धारा

अविरल धारा

बहने दो अविरल धारा को  
यह महाप्रलय को लाएगी 
कर लेगी सबको आत्मसात 
फिर दुनिया मिटती जाएगी 
रह जायेंगे वो लोग कि 
जिनका ह्रदय महासागर होगा 
बन बूँद अश्रु समर्पण की 
तत समां उसी में जाएगी 
जंगल में कर समावेश 
निज प्रभुता को पा जाएगी 
पेड़ो के पत्तों पर बैठी 
ओस बूँद कहलाएगी 
यदि ब्रह्माण्ड के पार गयी 
रणक्षेत्र वही बन जाएगी 
घिर असमान के पन्नो पर 
बादल को खा जाएगी  


मधु त्रिपाठी MM  
  

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