अविरल धारा
बहने दो अविरल धारा को
कर लेगी सबको आत्मसात
फिर दुनिया मिटती जाएगी
रह जायेंगे वो लोग कि
जिनका ह्रदय महासागर होगा
बन बूँद अश्रु समर्पण की
तत समां उसी में जाएगी
जंगल में कर समावेश
निज प्रभुता को पा जाएगी
पेड़ो के पत्तों पर बैठी
ओस बूँद कहलाएगी
यदि ब्रह्माण्ड के पार गयी
रणक्षेत्र वही बन जाएगी
घिर असमान के पन्नो पर
बादल को खा जाएगी
मधु त्रिपाठी MM
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