विदाई
बोया माली ने पौधा
फूल खिलने के लालच में
फिर सींचा क्रमश कोपल को
धीरे धीरे सहलाया
मुस्कान भरी मधुर अंखियो से
किया निरंतर रखवारी
फूल ले उड़ा कोई दूजा
सूनी कर दी सारी क्यारी
अपलक देख रहा इस ओर
केवल मूक मूर्ति बनकर
जिस पथ पर सुगंध फूल की
बुला न पाई मुड-मुडकर
मधु त्रिपाठी MM
No comments:
Post a Comment