Saturday, 4 June 2011


विदाई 


बोया  माली ने पौधा
फूल खिलने के लालच में 
फिर सींचा क्रमश कोपल को 
धीरे धीरे सहलाया 
मुस्कान भरी मधुर अंखियो से 
किया निरंतर रखवारी 
फूल ले उड़ा कोई दूजा 
सूनी कर दी सारी क्यारी 
अपलक देख रहा इस ओर    
केवल  मूक मूर्ति बनकर 
जिस पथ पर सुगंध फूल की 
बुला न पाई मुड-मुडकर 

मधु त्रिपाठी MM

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