बिना आवाज के ही चंद समुद्र के अंक से निकलकर आसमान से मानस मन को अपनी ओर आकर्षित करने को पदार्पण कर रहा था दूसरी तरफ सूर्य अपनी थकान मिटाने समुद्र कि गोद मी आंख मूंदकर सोना चाहता था
मै अपनी छत के ठीक बिचोबीच सिऱ्हाने तकिया रखे बडे गौर से देख रही थी कि संध्या ने अपनी लालिमा की कुछ छटा मेरे अंग पर उडेल दी कितनी सुशील सादगी से निर्मित लगती यह सांझ बिल्कुल सोलह वर्षीय कुमारी कोई वन बालिका सी इसे अपलक देखते रहने कि उत्कंठा सदैव बनी ही रही थी कि जैसे उसे नजर ही लग गयी हो कुछ स्याह काले बादलों ने आकर उसे घेर लिया अकेली बाला करती क्या सिवा समर्पण के
कामुक यामिनी {रात}ने इस तऱ्ह बाहो के घेरे मी लिया कि संध्या का अंग अंग तारो के रूप बदल गया सुकुमारी के मुख पर भय देख चतुर यामिनी ने उजाले के चांद को रात चमकणे का ठेका दे दिया
और आगे ..............कल
मधु
मै अपनी छत के ठीक बिचोबीच सिऱ्हाने तकिया रखे बडे गौर से देख रही थी कि संध्या ने अपनी लालिमा की कुछ छटा मेरे अंग पर उडेल दी कितनी सुशील सादगी से निर्मित लगती यह सांझ बिल्कुल सोलह वर्षीय कुमारी कोई वन बालिका सी इसे अपलक देखते रहने कि उत्कंठा सदैव बनी ही रही थी कि जैसे उसे नजर ही लग गयी हो कुछ स्याह काले बादलों ने आकर उसे घेर लिया अकेली बाला करती क्या सिवा समर्पण के
कामुक यामिनी {रात}ने इस तऱ्ह बाहो के घेरे मी लिया कि संध्या का अंग अंग तारो के रूप बदल गया सुकुमारी के मुख पर भय देख चतुर यामिनी ने उजाले के चांद को रात चमकणे का ठेका दे दिया
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