कुछ बचा नहीं अब शेष गणित,
जीवन रहस बताने को,
द्विगुणित होती वाणी अशेष,
फिर संसार बसाने को
रचना रचती निर्मम गाथा,
गाथा भी कुटज नहीं बुनती,
दामन में कालिया सोती है,
काँटों की चुभन कहाँ सुनती
समय बिताने दर्पण में,
पाकर चंपा का बदन कँवल,
पाश अनिश्चित कालों का,
मंथन गति संदिग्ध भंवर
अनुमानित काल बिता पाना,
होता बस राई भर का ही,
आह्लादित करता कुंठित मन,
होना संभव पल भर का ही
धरती पर टिप टिप की बूंदे,
अनुभव कल का फिर भी नवीन,
विगत व्यथा ह्रदय के शूल,
मिटते गलते भाव अधीन
पद चिन्ह न देखे जग,
रेशम से भरे वितान डगर,
चलने फिरने की पीकर मधु,
कोई कैसे हो पाए सहज
मधु त्रिपाठी MM
पद चिह्न देखे जग,
ReplyDeleteरेशम से भरे वितान डगर,
चलने फिरने की पीकर मधु,
कोई कैसे हो पाए सहज
-अच्छा प्रयास !
realy awesome .........jitni bhi badayi ki jaaye kam h.......mere paas shabd nahi h.......
ReplyDeleterealy awesome .........jitni bhi badayi ki jaaye kam h.......mere paas shabd nahi h.......
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