प्राणगीत
जा शलभ मुझे सो जाने दो
मै लहराकर गिर जाऊंगी
गर सो जो गयी चित बिना मिले
फिर भोर होत पछताऊँगी
तुम हास व्यंजना की शैली
मै विरह गीत गाने वाली
तुम सूरज बन चमका चाहो
मै बदली बन छाने वाली
चिर परिचित है आसमान
क्यूं खग पतंग बन उड़ता है
मै गलकर विस्तृत होती
तेरा विस्तार न दीखता है
यह इर्द-गिर्द शैशव बिखरा
निज रूप मेरा ही ले लेगा
कोई मुझमे प्राण पिरोते ही
अस्तित्व पुनः मुझको देगा
लय बहता है मम रूप लिए
अनचाहे भी बह जाऊंगी
गत आविर्भूत नव रूप लिए
इक प्राणगीत कहलाऊंगी
मधु त्रिपाठी MM
सुन्दर गीत, अलग सा!
ReplyDeleteयह इर्द-गिर्द शैशव बिखरा
ReplyDeleteनिज रूप मेरा ही ले लेगा
कोई मुझमे प्राण पिरोते ही
अस्तित्व पुनः मुझको देगा
लय बहता है मम रूप लिए
अनचाहे भी बह जाऊंगी
गत आविर्भूत नव रूप लिए
इक प्राणगीत कहलाऊंगी
Bahut hi sunder geet likha hae aapne... badhayee.
har bar kuch alag kuch nya kuch khas sa,pr jise sabdo me kah pana na aasan sa,gr8-diljale
ReplyDeleteमधु जी लाजबाब प्रस्तुति है आपकी.
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ.
आपकी काव्य प्रतिभा ने मन मोह लिया है.
बहुत बहुत आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
rakesh ji ko dhanyawad
ReplyDeleteमधु जी आपके गीत की ये पंक्तियाँ बहुत प्रभावशाली हैं
ReplyDeleteतुम हास व्यंजना की शैली
मै विरह गीत गाने वाली
तुम सूरज बन चमका चाहो
मै बदली बन छाने वाली
-मेरी ओर से हार्दिक बधाई !
♥
ReplyDeleteप्रिय मधु जी
सस्नेहाभिवादन !
बहुत सुंदर गीत लिखती हैं आप !
… सचमुच !
आपके ब्लॉग पर पुरानी पोट्स में आपकी विविधरंगी रचनाओं के आस्वादन से सुखद अनुभूत हुई …
प्रस्तुत गीत भी हृदयग्राही है …
कोई मुझमे प्राण पिरोते ही
अस्तित्व पुनः मुझको देगा
भा गई ये शब्द-मालिका ! प्रत्येक चरण ! पूरा गीत !
बधाई शब्द मन की बात कहने के लिए पर्याप्त नहीं है …
:))
दीपावली की अग्रिम बधाई और शुभकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार
unki chahat ne ansu ke tohfe diye,unki bato ne yadon ke tohfe diye,isliye andhero se lipat kr ro pde hum,kyoki ujalo ne bahut hame dhoke diye............................diljale
ReplyDeleteशानदार गीत और अभिव्यक्ति को नमन...
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