तरुनाई की साखा में अपि
अंगड़ाई की जंजीरे है
कोशिश नाकाम बबूलों की
फ़ैलाने भर को लकीरें है
करवा चौथपर लिखना चाहती थी किन्तु समय ही नहीं मिला इसलिय आज लिख रही हूँ
हमारे देश की मान्यताएं संस्कार और परम्पराओं की परिपाटी से भला कौन बच पाया है हम आज तक अपने सामाजिक परम्पराओं के तहत कम करते चले आ रहे है और दुहाई पाप पुण्य जैसे खोखले सोचों की
(सुबह तडके ही मंजू ने रोज की तरह डोर बेल बजाई
आयी की आवाज के साथ दरवाजा खोल दिया और वापस किचन में चाय की प्याली उठाने लगी)
मंजू - भाभी बस चाय पिला दो आप
मै- हाँ बस अभी कहते ही कप उसे पकड़ा दिया
रोज की तरह आज भी वही आते चाय की गुहार मंजू की आदत थी (मंजू हमारी महरिन)
मंजू -भाभी आज शाम को नही आउंगी
मैं -क्यों? माथे पर बल डालते हुए मैंने किचन से ही आँगन में झांकते हुए कहा
मंजू- आज करवा
मै- अच्छा हा हा ठीक ठीक कोई बात नहीं
मै उसकी बात बीच में काटते हुए बोली अरे तुम्हारी आँख किसलिए सूजी है
अरे भाभी आप से क्या छुपाऊँ रात बड़ी मार पड़ी
क्यों
मै उसकी बात बीच में काटते हुए बोली अरे तुम्हारी आँख किसलिए सूजी है
अरे भाभी आप से क्या छुपाऊँ रात बड़ी मार पड़ी
क्यों
भाभी पूरा बेवडा है
अच्छा ?
रात में कभी पानी की बाल्टी मेरे ऊपर डाल देता है तो कभी चोटी पकड़कर दीवार से लड़ा देता है क्या करूं किस्मत हम गरीबों की
मैंने उसकी तरफ प्रश्नवाचक लगी दृष्टि से देखा बता तो तू आज वृत है
हां बीबी जी वैसे ही नरक भोग रही हूँ नहीं करूंगी तो पाप पड़ेगा
पाप
सुनकर बड़ा अजीब लगा
पीने वाले जुर्म करने करने वाले पुरुष को पाप नहीं लगता किन्तु
ब्रह्मा द्वारा रची गयी सृष्टि में नारी यदि ठगने वाले पुरुष के लिए वृत न रहे तो उसे पाप लगता है
मंजू तो चली गयी किन्तु मै असहज हो इधर-उधर टहलती रही
भारतवर्ष में स्त्रियों को देवी कहा जाता है देवी किन्तु कौन सी
जहाँ तक मै जानती हूँ
इतनी शक्ति तो नहीं है किसी देवी में
किसी देवी ने पापियों पर प्यार की गंगा नहीं बहाई अपितु पूजा के विधानों में त्रुटियों का फल भी उल्टा पड़ जाता है अजर अमर देवियों ने कभी मृत व्यक्ति को न खिलाया होगा
और यह भारत की नारी जो स्वयं लाश सी जिन्दगी जी रही है किन्तु एक जीवित व्यक्ति का भरण-पोषण कर रही है
मात्र शादी जैसे पवित्र बंधन की आड़ में ?
मधु त्रिपाठी MM
मैंने तो यह शुभकामना की थी सबके लिए-
ReplyDeleteसुख की घड़ी
या जीवन-संघर्ष
रहे उत्कर्ष
युगों तक अखण्ड
हो सौभाग्य तुम्हारा ।
2
जो भी कामना
मन में हो भावना
सदा हो पूरी
सदा चाँदनी खिले
सिर्फ़ सुख ही मिले !
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
♥
ReplyDeleteमधु जी
सर्वप्रथम तो आपको करवाचौथ की बधाई !
:)
अब आपने शुरू में ही जो आदेश छोड़ दिया ये भी सहना होगा … , भला कैसे न हो इसकी अनुपालना ? :)
पूरा प्रहसन पढ़ा … एक मुस्कुराहट स्वतः तैर गई चेहरे पर …
देखिए निवेदन है , आप जैसी भद्र महिलाएं जब असहज हो जाती हैं तो हम जैसे पुरुषों के लिए कहीं जगह नहीं बचती … :)
गुस्सा थूक दीजिए प्लीज़ !
सभी पुरुष ठगने वाले पुरुष होने की सामर्थ्य कहां रखते हैं ?! सच मानें , उनका तो परसेंटेज भी नहीं बनता :) …
हक़ीक़त तो ये है कि स्थिति उलट है …
म्म्माऽऽफ़ करें …म्म्म्मैंऽऽऽ बहस में नहीं पड़ना चाहता …
:)
आपके लिए मेरे एक गीत की चंद लाइनें रखना चाह रहा था …
लेकिन जाने दीजिए …
# इतना अवश्य निवेदन है शादी जैसा पवित्र बंधन 'मात्र' शादी जैसे पवित्र बंधन की तरह नहीं गिनाया जा सकता …
न ही विवाह-संस्कार किसी आड़ के निमित्त कोई विधान है …
आशा है , मेरी किसी बात से मन को आहत नहीं होने देंगी आप !
Smile Please ... :)
त्यौंहारों के इस सीजन सहित
आपको सपरिवार
दीपावली की अग्रिम बधाइयां !
शुभकामनाएं !
मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
मेरे द्वारा शादी जैसे जैसे पवित्र बंधन के साथ मात्र लगाना उचित नहीं अतः क्षमा प्रार्थी हूँ.
ReplyDeleteमधु MM