माँ-
का शब्द आते ही आँखों में एक सरल, सुन्दर, दयामयी, आत्मीयता, एवं ओजस्वी मूर्ति उभर कर सामने आ जाती है
प्रत्येक व्यक्ति चाहे राजा हो या रंक नेता या अभिनेता बड़े -बड़े सकंट तो अकेले पर कर लेता किन्तु कभी मन आहत हुआ तो छुपाने के लिए उसे माँ के आँचल की पनाह चाहिए जहां वह जोर जोर आलाप लेकर प्रलाप
कर सके
आज फिल्म देखते समय मुझे अपनी माँ की याद हो आयी हांलाकि मुझे अपनी माँ की शक्ल ठीक से याद नहीं (क्योंकि जब उनका देहांत हुआ तब मेरी उम्र मात्र तीन या साढ़े तीन रही होगी) बचपन मेंआठवीं कक्षा में एक कविता लिखी थी यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ आशा है आपके मन को छुए
यह कविता मै अपने बेटे हर्ष के अनुग्रह पर लिख रही हूँ ..........
काश हमारे भी माँ होती
ये मै अक्सर सोचा करती
चिपक रात उसके सीने से
लग बिस्तर पर सोया करती
काश हमारे भी माँ होती
जब बस्ता ले पढने जाते
प्यार सहित चुम्बन जड़ देती
हौले से फिर हाथ पकड़कर
मुझको मोहरे तक ले आती
काश हमारे भी माँ होती
प्यार सहित चुम्बन जड़ देती
हौले से फिर हाथ पकड़कर
मुझको मोहरे तक ले आती
काश हमारे भी माँ होती
आँचल पकड़ पकड़ कर रोते
मुझको जब वो मारा करती
हम भी लाड दुलार दिखाते
मेरी जिद वो माना करती
मुझको जब वो मारा करती
हम भी लाड दुलार दिखाते
मेरी जिद वो माना करती
काश हमारे भी माँ होती
मधु मुस्कान लिए होठो पर
गप्पे खूब लड़ाया करती
गप्पे खूब लड़ाया करती
उडती फिरती मै गलियों में
हुल्लड़ खूब मचाया करती
हुल्लड़ खूब मचाया करती
काश हमारे भी माँ होती
यह लेना है वह लेना है
ऐसा मै जब बोला करती
ऐसा मै जब बोला करती
कान बंद कर नाक फुलाती
पर चुपके से सुन भी लेती
काश हमारे भी माँ होती
पर चुपके से सुन भी लेती
काश हमारे भी माँ होती
जब गीले अपने बालो को
छत पर जाकर धुप दिखाती
छत पर जाकर धुप दिखाती
तेल कटोरी लिए हाथ में
मेरी अम्मा आती दिखती
काश हमारे भी माँ होती
मेरी अम्मा आती दिखती
काश हमारे भी माँ होती
जब योवन चूनर पहनाता
देख मुझे वो मुस्का देती
तरह तरह की ज्ञान पूर्ण
विविधाओं को समझाया करती
काश हमारे भी माँ होती
दूर गगन में पंख पसारे
जहाँ तहां की बातें करती
मेरे पथ के काटों को
आँचल से परे हटाती जाती
काश हमारे भी माँ होती
मेरी अलसाई आँखों में
वो जल छीटे मारा करती
तब मधु पूर्ण मधुर जीवन की
सुखद सलोनी दिशा बदलती
काश हमारे भी माँ होती
चाहे कुछ मुझको न मिलता
बस मेरी अम्मा मिल जाती
न नीरवता आती मुझमे
न मेरी खुशियाँ खो जाती
काश हमारे भी माँ होती
सोच साँझ को मै रो पड़ती
अक्सर बच्चों की माओं को
टुकुर टुकुर मै देखा करती
काश हमारे भी माँ होती
मधु त्रिपाठी MM
देख मुझे वो मुस्का देती
तरह तरह की ज्ञान पूर्ण
विविधाओं को समझाया करती
काश हमारे भी माँ होती
दूर गगन में पंख पसारे
जहाँ तहां की बातें करती
मेरे पथ के काटों को
आँचल से परे हटाती जाती
काश हमारे भी माँ होती
मेरी अलसाई आँखों में
वो जल छीटे मारा करती
तब मधु पूर्ण मधुर जीवन की
सुखद सलोनी दिशा बदलती
काश हमारे भी माँ होती
चाहे कुछ मुझको न मिलता
बस मेरी अम्मा मिल जाती
न नीरवता आती मुझमे
न मेरी खुशियाँ खो जाती
काश हमारे भी माँ होती
थककर कदम कही रूक जाते
वो होती चलना सिखलाती
बहुत कठिन है लक्ष्य हमारा
वो होती पथ तो दर्शाती
काश हमारे भी माँ होती
नहीं स्वप्न यह पूरा होगासोच साँझ को मै रो पड़ती
अक्सर बच्चों की माओं को
टुकुर टुकुर मै देखा करती
काश हमारे भी माँ होती
मधु त्रिपाठी MM
मधु त्रिपाठी MM
मर्म की बात कही है आपने...दिल को छू गयी !
ReplyDeleteथककर कदम कही रूक जाते
ReplyDeleteवो होती चलना सिखलाती
बहुत कठिन है लक्ष्य हमारा
वो होती पथ तो दर्शाती
aashirwad chahti hoo
madhuMM
♥
ReplyDeleteमधु जी
सर्वप्रथम तो बधाई इस बात की , कि आपमें इतनी छोटी उम्र से ही काव्य सृजन का गुण हैं … बहुत अच्छा लगा जान कर ।
…लेकिन दुख हुआ कि आपको मां से इतनी-सी आयु में ही बिछड़ने का कटु अनुभव हो गया …
…लेकिन माता-पिता सदैव बच्चों के साथ ही होते हैं …
आप कृपया , मन कभी कमजोर न होने दें …
मैंने अपने पिताजी को बीस वर्ष पहले खोया ,
बहुत दुख होता है …
मेरी मां लगभग 80 वर्ष की हैं … कभी उनसे बिछड़ने की आशंका से ही डर जाता हूं …
भगवान कभी किसी से किसी के मां-बाप न छीने …
लेकिन यह संसार तो सराय ही है न !
आपकी रचना बहुत भावुक करने वाली है
बेटे हर्ष का शुक्रिया … जो मम्मी की एक पुरानी रचना पढ़ने का मौका दिया :)
बहुत बहुत आशीष है हर्ष के लिए !!
आपको सपरिवार
दीपावली की हार्दिक बधाइयां ! शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
ईश्वर आपको आगे और आगे उन्नति दे. शुभ आशीश
ReplyDeleteओह! बहुत सुन्दर भाव,मार्मिक और हृदयस्पर्शी.
ReplyDeleteआपकी रचना से मन्त्रमुग्ध हो गया हूँ.
माँ होती ही ऐसी है,ईश्वर का रूप.
तभी तो ईश्वर को कहा गया
'त्वमेव माता च पिता त्वमेव'
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
धनतेरस व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
दूर गगन में पंख पसारे
ReplyDeleteजहाँ तहां की बातें करती
मेरे पथ के काटों को
आँचल से परे हटाती जाती
माँ सिर्फ माँ होती है ..उसे शब्दों में अभिव्यक्त करना किसी के बस की बात नहीं , आपने बहुत भावपूर्ण शब्दों में इसे अभिव्यक्त किया है .....आपकी रचनात्मकता यूँ ही आगे बढती रहे ...यही कामना है ...!
माँ के बारे में जितना कहा जाये उतना कम है..बहुत ही सुन्दर शब्दों में ..माँ का चित्र आपने खींचा है| दिल को छु लेने वाली इस रचना के लिए आपको... बहत बहुत शुभकामनाएं|
ReplyDeleteबहुत खूब आप मेरी रचना भी देखे ...........
ReplyDeleteमन चंचल होता है...इस कविता ने विशवास की एक चादर और ओढ़ा दी है....चंचलता की शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक शुभकामनाये.....
ReplyDeleteबहुत ही दर्द भरी कविता है, मधुजी! बहुत खुप. माँ आखिर माँ होती है.
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